Tuesday, June 10, 2008

ओबामा की जीत का अर्थ...

अमेरिका के सत्ता प्रतिष्ठान का चरित्र कुछ ऐसा रहा है कि वहां यह धारणा रही है कि कोई अश्वेत या महिला अमेरिका का राष्ट्रपति निर्वाचित नहीं हो सकता. लेकिन पिछले पांच महीने में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी के लिए एक अश्वेत और महिला के बीच कांटे की टक्कर चली और अब जाकर अश्वेत के सर विजय का सेहरा बंधा है. एक अश्वेत अगर डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार का चुनाव जीत सकता है तो कल अमेरिकी राष्ट्र उसे राष्ट्रपति भी निर्वाचित कर सकता है.
 
अमेरिका के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में यह एक बड़ा परिवर्तन है. प्रतीकात्मक परिवर्तन के अपने ही कुछ और महत्व होते हैं. यह निश्चय ही अमेरिका के बदलते राजनीतिक और सामाजिक मानचित्र को प्रतिबिंबित करता है. अभी अश्वेत बराक ओबामा ने महिला हिलेरी क्लिंटन को पराजित कर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी जीती है. दूसरी परीक्षा नवंबर में होगी जब वे रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार सेनेटर जॉन मैक्केन से टक्कर लेंगे और तभी तय होगा कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की कमान किसके हाथ जाती है.
 
निश्चय ही दुनिया के किसी भी विकसित लोकतंत्र की दो सबसे बड़ी पार्टियों के बीच कोई बुनियादी अंतर नहीं होता. एक लंबी राजनीतिक प्रक्रिया के तहत ये व्यवस्था के अंग बन जते हैं. एक ही विचारधारा के स्वरूप में ढल जाते हैं. इसलिए ऐसा नहीं है कि ओबामा के राष्ट्रपति बन जाने पर अमेरिका में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन आने वाला है. लेकिन फिर भी इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि ओबामा का पूरा चुनाव अभियान ही परिवर्तन पर केंद्रित था.
 
वे परिवर्तन–परिवर्तन कहते रहे और एक स्थिति में तो हिलेरी को यह साबित करने की जरूरत पड़ी कि ओबामा के परिवर्तन के दावे खोखले हैं. ओबामा अमेरिकियों की अपरिभाषित परिवर्तन की आकांक्षा के प्रतीक बन गए हैं. लेकिन वे कैसे और क्या परिवर्तन लाएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है. उन्होंने इराक युद्ध का विरोध किया. उन्होंने कहा है कि इराक युद्ध छेड़ने में लापरवाही बरती गई लेकिन अब वापसी में लापरवाही नहीं बरती जा सकती. उन्होंने यह जरूर कहा है कि सैनिक शक्ति के स्थान पर वे डिप्लोमेसी का सहारा लेंगे लेकिन यह भी नहीं भूला जा सकता है कि इन्हीं ओबामा ने एक बार ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को रोकने के लिए मिसाइलों से आक्रमण की पैरवी की थी.
 
ओबामा ने इस्राइल का भी शत–प्रतिशत समर्थन किया है और कहा है कि वे ऐसे किसी भी संगठन से बात तक नहीं करेंगे जो इस्राइल को मान्यता न देता हो. मध्य–पूर्व की समस्या का समाधान इस तरह की नीति से नहीं निकल सकता और यह समस्या कई मायनों में विश्व राजनीति के प्रमुख केंद्रों में से है. अफगानिस्तान में उन्होंने युद्ध को फिर से संगठित करने की बात की है.
 
आज अमेरिका इराक और अफगानिस्तान में ऐसे युद्ध लड़ रहा है जिसे जीता नहीं जा सकता या इन युद्धों के संदर्भ में जीत को नए सिरे से परिभाषित करना होगा. क्या कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति इराक और अफगानिस्तान से सैनिक वापस बुलाकर विश्व भर में कोई बुनियादी परिवर्तन ला सकता है, इस सवाल का उत्तर कठिन और जटिल है लेकिन एक न एक दिन किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को इसका उत्तर ढूंढना ही होगा. पर आज अगर ओबामा परिवर्तन के प्रतीक बने तो मैक्केन परंपरा के साथ दिखते नजर आए. ओबामा अमेरिकियों की अपरिभाषित परिवर्तन की आकांक्षा को छूने में सफल रहे हैं.
 
46 वर्षीय अश्वेत ओबामा ने अपना सार्वजनिक जीवन किसी स्वयंसेवी संगठन से शुरू किया तो 71 वर्षीय मैक्केन वियतनाम युद्ध के नायक रहे हैं. अब ओबामा को राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अपने अभियान के मुद्दों को परिष्कृत करना होगा. इन्हें ठोस नीतिगत ढांचों में बदलना होगा और तब ही यह देखा जाएगा कि अंतिम विश्लेषण में वे अमेरिकियों पर कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं. निश्चय ही वे विदेश और आर्थिक नीतियों को अभियान के केंद्र में लाना चाहेंगे– इन दोनों ही मामलों में अमेरिका गहरे संकट में फंसा हुआ है.
 
रिपब्लिकन पार्टी रंग–नस्ल को मुद्दा नहीं बनाएगी, यह उम्मीद भी नहीं की जा सकती है. ओबामा आर्थिक संकट के माध्यम से अमेरिका के श्वेत श्रमिक वर्ग में पैठ बनाना चाहेंगे जो रिपब्लिकन उम्मीदवार मैक्केन के प्रबल समर्थक माने जाते हैं. 27 प्रतिशत कैथोलिक और 11 प्रतिशत अश्वेतों का रूझान पहले से ही डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर रहा है. ओबामा के अभियान संचालक शायद श्वेत नस्लवादी मतदाताओं को यह भी संदेश देना चाहें कि अश्वेत ओबामा के राष्ट्रपति बनने से कोई भूचाल नहीं आने वाला है. इससे पहले अब्राहम लिंकन, थामस जैफरसन, वारेन हार्डिंग और कोलिन कूलिड्ज भी राष्ट्रपति रह चुके हैं जिनके पूर्वज अश्वेत थे.
 
यह भी सच है कि ओबामा के राष्ट्रपति बन जाने से अमेरिका में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होने जा रहा है. चाहे ओबामा हों या हिलेरी या मैक्केन, सभी एक ही विचारधारा के हैं, एक ही व्यवस्था के वफादार हैं. आखिर अमेरिका के सबसे धनी वारेन वफ्फेट ऐसे ही तो ओबामा का समर्थन नहीं कर रहे हैं. लेकिन इन तमाम सच्चाइयों के बावजूद अगर अमेरिकी नीतियों में थोड़ा तालमेल का अंतर भी आता है तो पूरी दुनिया पर इसका असर पड़ेगा और छोटा परिवर्तन भी परिवर्तनों की एक श्रृंखला को जन्म दे सकता है.
 
विकासशील देशों में साम्राज्यवाद के कारण 'गोरी चमड़ी' के प्रति एक दुराव का भाव रहा है. ओबामा दुनिया में अमेरिका को एक नई छवि दे सकते हैं– अमेरिका के बहुनस्लीय समाज के संदेश का दुनिया पर एक अलग तरह का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. अमेरिकी राजनीति पर हमेशा से ही श्वेतों का वर्चस्व रहा है. भले ही अमेरिका के बहुरंगी और बहुनस्लीय समाज का लगातार विस्तार होता ही रहा है. 
 
ओबामा का डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बनना और अगर वे राष्ट्रपति भी बन जाते हैं तो यह निश्चय ही अमेरिका के विविध सामाजिक समीकरणों को प्रतिबिंबित करेगा. दुनिया भर में अमेरिकी अपील और 'सॉफ्ट पावर' पर नए आयाम जुड़ जाएंगे. बराक ओबामा अमेरिका की नई पीढ़ी के नेता हैं. वे अमेरिका की नई पहचान हैं. यह 21वीं सदी का अमेरिका है जो एक ओर गहरे संकट में फंसा है और दूसरी ओर नए प्रतीकों का सृजन कर रहा है.

3 comments:

उमाशंकर सिंह said...

सर, आपकी यहां उपस्थिति देख अच्छा लगा। ये आलेख अमेरिकी राजनीति की जानकारी को नया आयाम देता है।
शुक्रिया

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger said...

ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद व्यावहारिक धरातल पर कितना परिवर्तन होता है ये तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन अमरीकी व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर खड़े आम अश्वेतों में एक नए आशावाद का संचार तो हो ही चुका है.

Amit K Sagar said...

बहुत अच्छा लेख. शुभकामनायें. उम्मीद है लिखते रहेंगे.
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